दिनांक:- २६ नवम्बर २०२२
समय:- दोपहर १२ :०० बजेप्रिय डायरी,
आज बड़े दिनों बाद माँ के साथ बैठ कर गाने सुन रही थी । माँ को काम करते-करते पुराने फिल्मी -गीत सुनना अच्छा लगता है और अब उनके साथ सुनते-सुनते कुछ गीत तो मुझे भी अच्छे लगने लगे हैं, बल्कि कुछ गीत आज के गानों से अधिक सुरीले और अर्थपूर्ण लगते हैं ।
आज ऐसा ही एक गीत सुना - "तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है , जहाँ भी जाऊँ , ये लगता है तेरी महफ़िल है" और बस मुझे "नन्नन" की याद आ गई ।
नन्नन जितनी कोमल और स्नेहिल हैं, उतनी सबल भी हो सकती हैं और समय पड़ने पर सही फटकार भी लगा सकती हैं, यह मुझे तब पता चला जब मैं पांचवी कक्षा में थी। मैं रोज़ अपनी बाकी सहेलियों के साथ स्कूल से घर लौटती, उस में कुछ लड़कियाँ थोड़ी ज़्यादा चतुर थीं। बचपन की मित्रता में लड़ाई-झगड़े और थोड़ा चिढ़ाना आम बात होती है। मेरी कुछ सहेलियों ने मुझे भी चिढ़ाने की कोशिश की, यह देख कि मैं सहजता से चिढ़ रही हूँ, उन्हें मुझे तंग करने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था। नन्नन यह खिड़की से देख रहीं थीं, वे नीचे उतर कर आयीं और सब बच्चों को अच्छी फटकार लगाई पर अगले ही क्षण बड़े प्रेम से मेरी सभी सहेलियों को अपने पास बुलाया, अच्छे और बुरे मज़ाक के बीच का अंतर समझा कर, बहुत ही स्नेह से हम सब की मित्रता फिर से करा दी।
मेरी सहेलियाँ तो अचंभित ही थीं, पहले डाँट फिर इतना प्यार। मैं मात्र आनंदित थी, मुझे तो पता था कि अंत में होना क्या है।
अनुशासन के साथ नन्नन की दो सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा थी सदाचरण और सच्ची मित्रता। नन्नन ने मुझे हमेशा समझाया कि किसी को जान-बूझ कर दुखी करने से बड़ा गलत काम कुछ नहीं। वैसे ही उनका यह भी कहना था कि अच्छा मित्र होना, अच्छे मनुष्य होने कि निशानी है। यदि कोई बच्चा अच्छा मित्र बनने का अभ्यास करे, तो आगे चल कर अच्छा इंसान भी बनेगा। यह बात उन्हों ने मुझे कृष्ण-सुदामा और प्रभु राम-सुग्रीव की मित्रता की कथा सुनाकर बताई थी। उसी प्रकार अपने गुरुजनों का आदर करने की शिक्षा भी मुझे छोटी आयु से ही दी गई, यही कारण है कि आज भी अपने शिक्षकगणों का आशीष मुझे मिलता रहता है ।
जैसे- जैसे मैं बड़ी हुई, अच्छे और बुरे मित्रों के बीच का अंतर भी उन्हों ने समझाया। ये ज्ञान मेरे तब बहुत काम आया जब मैं ने कॉलेज में प्रवेश किया। उनका स्पष्ट कथन था, यदि कोई हमारा सच्चा मित्र हो तो हमें कोई भी गलत काम करने के लिए कभी नहीं उकसाएगा, ना ही कभी हमें कुछ ऐसा करने को कहेगा जिस में हमारा अहित हो या हमारी अंतरात्मा उस कार्य को करने की अनुमति न देती हो और ना ही कभी हमें कोई अच्छा कार्य करने से रोकेगा । नन्नन की यह सभी शिक्षाएं केवल कथन नहीं थीं , यह सभी बातें उनके आचरण में भी समाहित थीं ।
आज मैं तुम्हारा एक पन्ना अपनी जीवन की इस पहली गुरु को समर्पित करती हूँ, जिनके बिना मेरा जीवन अधूरा है।
साथ ही साथ, मैं यह भी कामना करती हूँ कि मेरी तरह प्रत्येक बच्चे और युवा को उसके घर के बुजुर्गों की छत्र-छाया मिले। हमारे नाना-नानी और दादा-दादी का प्यार न केवल हमारा चरित्र और जीवन सँवारता है , बल्कि हर क्षण हमें राह दिखाता है। किसी ने सच ही कहा है "जीवन की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी पाठशाला हमारे बुज़ुर्गों के चरणों में है।
ठीक है , तुम्हारे साथ आज बहुत लंबा समय बिताया। खाने का समय हो रहा है और माँ भी नाराज़ हो रही है।
तुम से कल मिलती हूँ।
तुम्हें एक बात और बतानी है, मेरे कॉलेज में हमें रिसर्च -असाइनमेंट मिला है , शिक्षा या बाल-मनोविज्ञान संबंधी हम किसी भी विषय में एक री -सर्च कर सकते हैं । अतः संभव है कि किसी दिन तुमसे बात करने में देर हो या किसी दिन तुमसे मिलने आ ही न पाऊँ । तुम भी मेरे लिए प्रार्थना करना कि मुझे सफलता मिले , अगले सप्ताह फिर मिलेंगे , तब तुम्हें तुम्हारा नाम भी मिल जाएगा ।
बाये, सी यु।
सोचा , आज एक बार पुनः उन पलों को जियूँ जो मेरे जीवन की सबसे अनमोल पूँजी है । अतः , आज मैं तुम्हें अपने जीवन के सबसे विशेष और अनमोल व्यक्ति से मिलाने लायी हूँ, मेरे जीवन की पहली गुरु, मेरी नानी जिन्हें मैं प्यार से ""नन्नन" कह कर बुलाती हूँ। बचपन में मैं नानी शब्द पूरा बोल नहीं पाती थी, तब से "नन्नन" नाम चिपक गया है। हम सब के जीवन में कोई -न -कोई ऐसा व्यक्ति ज़रूर होता है , जिसे हम अपना सबसे मजबूत संबल मानते हैं , जिसमें अपने मित्र , गुरु और मार्गदर्शक को एक साथ पाते हैं ,मेरे लिए वह व्यक्ति नन्नन हैं ।
पता है , आज तुमको मुझ में जो भी अच्छाई दिखाई देती है, वह सब मेरी नन्नन कि ही देन है। मेरा पालन- पोषण उन्हों ने ही किया है। माँ ऑफिस जाती थी और शाम को ही घर आती, इसीलिए मेरे बालपन का सबसे अधिक समय नन्नन के साथ बीता और इसे मैं अपने जीवन का सब से बड़ा सौभाग्य मानती हूँ।
नन्नन बहुत अनुशासन प्रिय है थीं , शुद्ध कर्मयोग का प्रतीक। सदैव घड़ी के अनुसार चलने वाली, बल्कि घड़ी से भी पहले। उनके "नौ दस ग्यारह बारह" एक साथ बजते, यह बात हमारे घर में जितने गर्व की होती , उतनी ही हँसी की भी। जब भी हमें सुबह नाश्ते के लिए या रात को सोने में देर होती तब नन्नन कहतीं " नौ दस ग्यारह बारह बज रहा है बेटा, नाश्ता कब करोगी/सोने कब आओगी ?" माँ और मेरी हंसी छूट जाती, तब हम लोग उनसे कहते " अब यह भी बता दो, कि निश्चित कितने बजे हैं " । जब सर्दी के मौसम में दिन छोटे हो जाते तब यह वाक्य और भी अधिक सुनने को मिलता , विशेष कर सुबह की ओर, कारण दिन जल्दी बीतता सो नन्नन की पूजा सुबह आठ बजे के स्थान पर नौ बजे होती और उन्हें देर हो रही है , यह सोच कर वे परेशान हो जातीं ।
नन्नन बहुत अनुशासन प्रिय है थीं , शुद्ध कर्मयोग का प्रतीक। सदैव घड़ी के अनुसार चलने वाली, बल्कि घड़ी से भी पहले। उनके "नौ दस ग्यारह बारह" एक साथ बजते, यह बात हमारे घर में जितने गर्व की होती , उतनी ही हँसी की भी। जब भी हमें सुबह नाश्ते के लिए या रात को सोने में देर होती तब नन्नन कहतीं " नौ दस ग्यारह बारह बज रहा है बेटा, नाश्ता कब करोगी/सोने कब आओगी ?" माँ और मेरी हंसी छूट जाती, तब हम लोग उनसे कहते " अब यह भी बता दो, कि निश्चित कितने बजे हैं " । जब सर्दी के मौसम में दिन छोटे हो जाते तब यह वाक्य और भी अधिक सुनने को मिलता , विशेष कर सुबह की ओर, कारण दिन जल्दी बीतता सो नन्नन की पूजा सुबह आठ बजे के स्थान पर नौ बजे होती और उन्हें देर हो रही है , यह सोच कर वे परेशान हो जातीं ।
मेरा पालन-पोषण भी सम्पूर्ण अनुशासन से किया। किस समय पढ़ाई करनी है, कब खेल का समय है, टीवी कितने समय तक देखना है, सब कुछ एक अनुशासित टाइम - टेबल के अनुसार होता पर यह अनुशासन इतनी कोमलता, सहजता और आनंद के साथ किया गया कि सब कुछ खेल-खेल में हो गया।
आज जब मैं अपने आस-पास किसी छोटे बच्चे को अनुशासन में न रहने के लिए या पढ़ाई-लिखाई की बात पर माता-पिता से डांट खाते देखती हूँ या फिर क्लास में मिले अंकों के लिए माता-पिता को हैरान-परेशान, बच्चों को एक ट्यूशन से दूसरे ट्यूशन भेजते देखती हूँ, तो सोंचती हूँ कि नन्नन कितनी मौलिक और बुद्धिमान थीं। अनुशासन के लिए कठोरता तो सभी करते हैं पर मेरी नन्नन कोमल अनुशासन का मूर्तिमान रूप हैं।
वैसे तो नन्नन के साथ बचपन की यादें बहुत है पर मेरा सब से प्यारा समय था "कहानियों का समय"।नन्नन हर रात मुझे कोई न कोई नई कहानी सुनाती, कभी भगवान राम की, कभी कान्हा जी के बचपन की ढेरों कहानियाँ, और कभी पंच-तन्त्र और जातक कथा की खूब सारी कहानियाँ और मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व होता है कि मैं ने अपने सभी जीवन-मूल्य नन्नन की कहानियों से सीखे। आज बड़े होने पर भी मुझे नन्नन की कहानियाँ सुनना और उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता , बस इतना फर्क इतना था कि उनकी कहानियाँ सुनने के साथ-साथ, मैं भी उन्हें एक -आध कहानियाँ सुनाने लगी थी । कभी ब्लॉग जगत, प्रतिलीपि या किसी पुस्तक में पढ़ी हुई या फिर अपनी लिखी हुई।
नन्नन जितनी कोमल और स्नेहिल हैं, उतनी सबल भी हो सकती हैं और समय पड़ने पर सही फटकार भी लगा सकती हैं, यह मुझे तब पता चला जब मैं पांचवी कक्षा में थी। मैं रोज़ अपनी बाकी सहेलियों के साथ स्कूल से घर लौटती, उस में कुछ लड़कियाँ थोड़ी ज़्यादा चतुर थीं। बचपन की मित्रता में लड़ाई-झगड़े और थोड़ा चिढ़ाना आम बात होती है। मेरी कुछ सहेलियों ने मुझे भी चिढ़ाने की कोशिश की, यह देख कि मैं सहजता से चिढ़ रही हूँ, उन्हें मुझे तंग करने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था। नन्नन यह खिड़की से देख रहीं थीं, वे नीचे उतर कर आयीं और सब बच्चों को अच्छी फटकार लगाई पर अगले ही क्षण बड़े प्रेम से मेरी सभी सहेलियों को अपने पास बुलाया, अच्छे और बुरे मज़ाक के बीच का अंतर समझा कर, बहुत ही स्नेह से हम सब की मित्रता फिर से करा दी।
मेरी सहेलियाँ तो अचंभित ही थीं, पहले डाँट फिर इतना प्यार। मैं मात्र आनंदित थी, मुझे तो पता था कि अंत में होना क्या है।
अनुशासन के साथ नन्नन की दो सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा थी सदाचरण और सच्ची मित्रता। नन्नन ने मुझे हमेशा समझाया कि किसी को जान-बूझ कर दुखी करने से बड़ा गलत काम कुछ नहीं। वैसे ही उनका यह भी कहना था कि अच्छा मित्र होना, अच्छे मनुष्य होने कि निशानी है। यदि कोई बच्चा अच्छा मित्र बनने का अभ्यास करे, तो आगे चल कर अच्छा इंसान भी बनेगा। यह बात उन्हों ने मुझे कृष्ण-सुदामा और प्रभु राम-सुग्रीव की मित्रता की कथा सुनाकर बताई थी। उसी प्रकार अपने गुरुजनों का आदर करने की शिक्षा भी मुझे छोटी आयु से ही दी गई, यही कारण है कि आज भी अपने शिक्षकगणों का आशीष मुझे मिलता रहता है ।
जैसे- जैसे मैं बड़ी हुई, अच्छे और बुरे मित्रों के बीच का अंतर भी उन्हों ने समझाया। ये ज्ञान मेरे तब बहुत काम आया जब मैं ने कॉलेज में प्रवेश किया। उनका स्पष्ट कथन था, यदि कोई हमारा सच्चा मित्र हो तो हमें कोई भी गलत काम करने के लिए कभी नहीं उकसाएगा, ना ही कभी हमें कुछ ऐसा करने को कहेगा जिस में हमारा अहित हो या हमारी अंतरात्मा उस कार्य को करने की अनुमति न देती हो और ना ही कभी हमें कोई अच्छा कार्य करने से रोकेगा । नन्नन की यह सभी शिक्षाएं केवल कथन नहीं थीं , यह सभी बातें उनके आचरण में भी समाहित थीं ।
नन्नन का स्नेह और अपनत्व केवल घर तक सीमित नहीं था , अपने आस-पास के सभी परिचितों और माँ और मेरे मित्रों को भी मिलता रहता । मुझे टिफिन देते समय, मेरी सहेलियों के लिए भी अपने हाथ के बनाए पकवान पैक करना , यह कह कर "बेटा , सब के साथ मिल- बाट कर खाना "। कभी यदि मैं उन्हें घर आ कर बताती कि मेरी कोई सहेली दुखी है या अस्वस्थ है और उसके प्रति अपनी चिंता व्यक्त करती तो बड़े स्नेह से यह कहना " कोई बात नहीं बेटा , भगवान जी सब ठीक कर देंगे" और सच्चे मन से उनके लिए शुभ कामना और आशीष देना । कभी-कभी जब मैं उसके अगले दिन स्कूल या कॉलेज से घर लौटती, तब उस सहेली का हाल चाल भी पूछतीं "तुम्हारी सहेली कल तो रो रही थी, आज कैसी है"।
नन्नन का कर्मयोग भी इसी प्रकार अनुशासन और ममत्व से चलता रहता, चाहे उनका कमर और उनके पैर दर्द से बेहाल क्यों न हों, वे घर का काम करना नहीं छोड़तीं । हमारे लिए स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन बनाना, मेरे बालों में तेल लगाना, या हमारी चीजों को सजाना-सवारना, मुझे अपने पास बैठा कर जीवन के अनुभव बताना , मुझे कोई-न-कोई शिक्षा और प्रोत्साहन देना , अनवरत चलता रहता ।
उनके बनाये पकवान हर त्योहार और उत्सव में रंग भर देते और कभी-कभी तो उनके हाथ का बना खाना खाना अपने आप में उत्सव होता । दुर्गा -पूजा और दीपावली में उनके हाथ के नारियल के लड्डू, पीड़किया , लवंग-लता, यहाँ तक की रसगुल्ले , रसमलाई और छोले-भटूरे भी और होली में उनके दही-बड़े और मालपूए की बड़ी धूम मचती । मेरे लिए तो हर कौर में परमानंद होता । सामान्य दिनों में भी हमारा फ्रिज कभी खाली न होता , नन्नन एक से एक पौष्टिक और स्वादिष्ट पदार्थ बना कर रखतीं " हनु गिरधारी को पढ़ाई करते-करते भूख लगेगी तो खाएगी "। हाँ , नन्नन का वश चलता तो मुझे प्यार से सारे भगवानों के नाम दे देतीं । बचपन से ही कभी गिरधारी, कभी गणेशु तो कभी कोई और भगवान का नाम । घर में पुकार का नाम हनु ( हनुमान जी पर ) और मेरा शुभ नाम "अनंता " भी रामायण से ढूंढ कर उन्हों ने ही रखा ।
घर में कोई भी सब्ज़ी यदि मेरे पसंद की बनी हो , विशेष कर पनीर , कटहल , स्वादु बैंगन या आचारी मिर्ची, तब वे मुझे अपनी थाली में से थोड़ी सब्ज़ी ज़रूर निकाल कर मेरी थाली में डाल देतीं । माँ कभी-कभी नराज होतीं क्योंकि नन्नन स्वयं ही कम खातीं थीं, बड़े होने पर तो मैं भी कभी-कभी मना करने लगी थी , पर वे नहीं मानतीं, कहतीं " बड़ों का स्नेह और आशीष ठुकराते नहीं हैं "।
मैं भी उसके बाद से उनका आशीष मान कर ही उनकी थाली की सब्ज़ी खाती थी ।
नन्नन के लिए उनका घर और उनके बच्चे उनकी जीवन-धूरी थे । अपने जीवन के अंतिम दो- ढाई वर्ष उन्हों ने हमें तरह-तरह के पकवान खिला कर और घर को अपनी हस्त-कलाओं से सजाने में व्यतीत किया । लॉक- डाउन के समय से ही उनकी इन सभ कार्यों में एक विशेष तीव्रता और निरन्तरता आ गई थी । मानों , अपनी हस्तकला के रूप में घर के कोने-कोने को अपने स्नेह और आशीष से सींच रहीं हों ( तब नहीं सोचा था कि वे अस्वस्थ होंगी और इस जून भगवान जी उन्हें अपने पास बुला लेंगे )। वैसे ही उनके हाथों के बनी कौन-कौन से व्यंजन मुझे अधिक प्रिय हैं , वह भी सिखाया, कहतीं " जो चीजें तुमको खाना पसंद है, उन्हें बनाना तो सीख ही लो ।
आज भी नन्नन मेरा सब से बड़ा मानसिक बल और सब से बड़ा आधार हैं। भले ही माँ जानकी ने उन्हें अपने पास बुला लिया हो , उनकी शिक्षाएं, बातें और उनका आशीष सदैव मेरे साथ हैं और मेरे जीवन की अनमोल पूँजी हैं । नन्नन अब मेरे लिए पूरा घर हो गई है , मेज़ पर बिछे टेबल -क्लॉथ से लेकर बाथरूम के आगे बिछे फुट- मैट तक, सब उन्हीं का सिला हुआ है । उनके हाथ के सिले हुए सुंदर फ़्रॉक मेरे लिए उनका अनमोल स्नेह है । मम्मा (बड़ी मासी ) के हाथ के छोले-भटूरे के स्वाद में , माँ की गृह-कुशलता में , मौसाजी के इडली और डोसे में , मेरी कविताओं में , सब में उनका अस्तित्व समाया है ।
आज मैं तुम्हारा एक पन्ना अपनी जीवन की इस पहली गुरु को समर्पित करती हूँ, जिनके बिना मेरा जीवन अधूरा है।
साथ ही साथ, मैं यह भी कामना करती हूँ कि मेरी तरह प्रत्येक बच्चे और युवा को उसके घर के बुजुर्गों की छत्र-छाया मिले। हमारे नाना-नानी और दादा-दादी का प्यार न केवल हमारा चरित्र और जीवन सँवारता है , बल्कि हर क्षण हमें राह दिखाता है। किसी ने सच ही कहा है "जीवन की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी पाठशाला हमारे बुज़ुर्गों के चरणों में है।
तुम्हारे माध्यम से ही नन्नन को आज सुने गीत की कुछ पंक्तियाँ समर्पित करती हूँ :-
तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शमिल है ,
जहाँ भी जाऊँ ये लगता है तेरी महफिल है ।
हर एक फूल किसी याद सा महकता है,
तू पास हो कि नहीं , फिर भी तू मुकाबिल है ।
ठीक है , तुम्हारे साथ आज बहुत लंबा समय बिताया। खाने का समय हो रहा है और माँ भी नाराज़ हो रही है।
तुम से कल मिलती हूँ।
तुम्हें एक बात और बतानी है, मेरे कॉलेज में हमें रिसर्च -असाइनमेंट मिला है , शिक्षा या बाल-मनोविज्ञान संबंधी हम किसी भी विषय में एक री -सर्च कर सकते हैं । अतः संभव है कि किसी दिन तुमसे बात करने में देर हो या किसी दिन तुमसे मिलने आ ही न पाऊँ । तुम भी मेरे लिए प्रार्थना करना कि मुझे सफलता मिले , अगले सप्ताह फिर मिलेंगे , तब तुम्हें तुम्हारा नाम भी मिल जाएगा ।
बाये, सी यु।
तुम्हारी अनंता
प्रिय अनंता, तुम्हारे भीतर संस्कारों और सृजन का बीजारोपण करने वाली प्यारी माँ अर्थात नन्नन के लिए ये भावपूर्ण लेख अनायास मेरी आँखें नम कर गया।बहुत भाग्यशाली होते हैं वे बच्चे जो नन्नन सरीखी दादी अथवा नानी की स्नेहिल छत्रछाया में पलते हैं।मुझे भी मेरी दादी ने पाला था।संयुक्त परिवार में माओँ के पास उस समय अपने कई बच्चों के लिए समय का अभाव होता होगा।पर दादी अथवा नानी के रह्ते उन्हें कोई कमी कैसे हो सकती थी।नन्नन के दिये सभी गुण तुम्हारे जीवन को पग-पग पर आलोकित कर रहे हैं।नारीत्व की गरिमा बढ़ाता उनका जीवन हर तरह से सम्पूर्ण था जिसकी झलक तुम्हारे सद्गुणों में दिखाई पड़ती है।उन्होने जिन सद्गुणों की थाती तुम्हें सौंपी है उन्हे सदैव संजो कर रखना और दूसरों के लिए एक मिसाल बनना।ढेरों स्नेहाशीष हमेशा खुश रहो और आगे बढो।माँ की पुण्य स्मृति को सादर नमन ।
ReplyDeleteआदरणीया मैम , आपके इस स्नेहपूर्ण सुंदर प्रतिक्रिया के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं । आपकी टिप्पणी ने मेरी रचनाओं को विस्तार देती है और मुझे सदैव स्नेह से शिक्षित करती और ज्ञान बढ़ाती है । आपका आशीष इसी प्रकार मिलता रहे । सादर प्रणाम एवं हार्दिक आभार ।
Deleteप्रिय अनंता,
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण और प्रेम से छलकते संस्मरण संजोए है तुमने। तुम्हारी नन्नन के बोये संस्कार ही हैं, गुण,शिक्षा और कर्मयोग के सीख के बीज ,जो तुम्हारे व्यक्तित्व में समाहित होकर अपनी आभा बिखेर रहे हैं तुम्हें भीड़ से अलग कर एक अलग स्वरूप प्रदान कर रहे हैं। उनका दिया हुआ आशीष का अनमोल धरोहर तुम्हारे जीवन में सदैव खुशियाँ बिखेरता रहेगा और तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहेगा।
लिखती रहो
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं तुम्हारे लिए।
सप्रेम।
आदरणीया मैम, सादर प्रणाम । आपकी यह अत्यंत स्नेहिल प्रतिक्रिया पा कर आनंदित हूँ। आपकी प्रतिक्रिया की विशेष प्रतीक्षा रहती है , हार्दिक आभार ।
Deleteआज जब मैं अपने आस-पास किसी छोटे बच्चे को अनुशासन में न रहने के लिए या पढ़ाई-लिखाई की बात पर माता-पिता से डांट खाते देखती हूँ या फिर क्लास में मिले अंकों के लिए माता-पिता को हैरान-परेशान, बच्चों को एक ट्यूशन से दूसरे ट्यूशन भेजते देखती हूँ, तो सोंचती हूँ कि नन्नन कितनी मौलिक और बुद्धिमान थीं। अनुशासन के लिए कठोरता तो सभी करते हैं पर मेरी नन्नन कोमल अनुशासन का मूर्तिमान रूप हैं।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा और गहन लिखती हैं आप...लिखती रहें...ईश्वर आपको तरक्की प्रदान करे।
आदरणीय सर, सादर प्रणाम। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आपकी यह उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया बहुत अनमोल है। आते रहिये व अपना आशीष बनाये रखिये।
Deleteइस संस्मरण के गागर में नन्नन के विराट व्यक्तित्व का सागर वैसे ही उमड़ा है, जैसा नन्नन ने अनंता रूपी गागर में सद्गुणों एवं संस्कार के अनंत सागर को डाल रखा है।
ReplyDeleteआदरणीय सर, आपकी इस स्नेहिल भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए आपको सादर प्रणाम। अपना आशीष इसी प्रकार बनाये रखियेगा।
Deleteबहुत ही भावपूर्ण संस्मरण लिखा है आपने प्रिय अनंता अपनी प्यारी नन्नन की मधुर स्मृतियों में....वाकई नन्नन ने उत्तम संस्कारों का बीजारोपण कर अनंत प्रेम से सींचा है अनंता को...बस अब इसी प्रेम एवं संस्कारों को बाँटते हुए खूब तरक्की कर नन्नन के सारे स्वप्न फलीभूत करना ।अनंत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआदरणीया मैम , आपकी इस प्यारी सी आशीष-भरी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए बहुत -बहुत आभार व सादर प्रणाम । आपकी टिप्पणी पा कर बहुत प्रसन्नता हुई । आती रहें व अपना आशीष बनाएं रखें ।
DeleteOh dear dear Hannu 💞 it is so beautiful 🙏 respecting grandparents and loving them this much is heart warming. I can relate to your emotions as I myself had been so close to my paternal grandparents 💞 अनेकों आशीर्वाद ,तुम्हें और अनेकों शुभकामनाएं नन्नन को , ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें और उनका आशीष सदैव तुम पर बना रहे 🙏 Great writing !
ReplyDeleteमेरी प्यारी आंटी , आपके इस सुंदर स्नेहिल आशीष ने मेरा पूरा दिन शुभ कर दिया है । नन्नन के प्रति आपका स्नेह और आदर दिल को छू जाता है । नन्नन को भगवान जी ने इसी वर्ष जून २०२२ में अपने पास बुला लिया है परंतु आपका यह स्नेह उन तक जरूर पहुँच रहा होगा और वे आपको भी बहुत आशीष दे रही होंगी । लव यू
Deleteलिखती रहें | सुंदर लेखन |
ReplyDeleteआदरणीय सर, सादर प्रणाम । आशीष देने के लिए आभार ।
Deleteउसकी परिभाषा क्या लिखूं । जिसने इतनी सरल भाषा में इतना कुछ लिख दिया ।
ReplyDeleteजीवंत डायरी ! उम्दा लेखन !
आदरणीय सर, आपकी इस सुंदर प्रतिक्रिया ने मन आनंदित कर दिया। आपकी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार व सादर प्रणाम।
Deleteनन्नन अब मेरे लिए पूरा घर हो गई है....
ReplyDeleteबस इस एक वाक्य में ही पूरे संस्मरण का सार छिपा है प्रिय अनंता ! आज की नानी दादियों को लाड़ प्यार के अतिरेक में बच्चों को बिगाड़ते ही देखती हूँ अक्सर.... सभी तो नहीं, पर अधिकतर।
पूरा आलेख नन्नन के व्यक्तित्व का दर्पण बन गया है जिसमें हम नन्नन को देख पा रहे हैं, महसूस कर पा रहे हैं। लिखती रहो, बहुत आशीर्वाद।
आदरणीया मैम, आपकी यह प्रतिक्रिया अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण है। आप के लिए यह संस्मरण को इतने भाव से पढ़ा, इसके लिए आपको हार्दिक आभार व सादर प्रणाम।
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteडायरी लेखन से नई ऊर्जा मिलती है।
आदरणीय सर, हार्दिक आभार व सादर प्रणाम। अपना आशीष बनाये रखियेगा।
Deleteप्यारी बिटिया अनंता जी ,
ReplyDeleteआप जैसे बच्चे ही " नन्नन " की समाज को अमूल्य धरोहर है , आपकी रचना बहुत सच्ची एवं खरी लगी |
निरंतर लिखे , शुभकामनाएं एवं बहुत आशीष !
भगवान से प्रार्थना है की आपकी प्यारी "नन्नन" को स्वर्ग में उत्तम स्थान दे !
जय श्री कृष्ण !
आदरणीय सर, आपके इस स्नेहिल आशीष के लिए अनेक आभार। देर से उत्तर देने के लिए क्षमा चाहती हूँ। परीक्षाओं के कारण ब्लोफ पर आना सम्भव नहीं हो पा रहा था।
DeleteYou are honestly so talented my sweet friend! I love reading your works. It was so heartwarming to read about Nannan and her disciplined yet soft way of nurturing you! Thank you for sharing your treasured memories with us! Can’t wait for new stories from चल मेरी डयरी !
ReplyDeleteप्रिय गौरी, तुमने सदैव बहुत प्यार से उत्साह बढ़ाया है एयर हर समय मेरा साथ दिया है। तुम्हारी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहती है। आती रो मेरी प्यारी दोस्त। लव यू ❤️💖💐
Deleteप्रिय अनंता, नन्नन की याद में लिखी, मन को छूती तुम्हारी सुंदर,सरस पोस्ट का अंश भर भी किसी बच्चे के जीवन में शामिल हो तो वो निश्चित ही संस्कारवान और मूल्यों वाला होगा। ये बड़े ही सौभाग्य की बात होती है कि उसकी परवरिश में दादी, नानी का हाथ और साथ हो, सौभाग्यवश मेरी भी परवरिश मेरी नानी की छत्रछाया में हुई, उनसे मैने सेवाभाव,दयालुता और जीवन मूल्य के विभिन्न पहलुओं को सीखा जो आज भी मेरी पूंजी हैं।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है, डायरी लेखन भी एक कला है, जिसे लिखने का हुनर तुम्हारे अंदर दिख रहा है, लिखती रहो और ऐसे ही सुंदर प्रसंगों से हमें आनंदित करती रहो.. मेरी हार्दिक शुभकामनाएं प्यारी बच्चे।
आदरणीया मैम, आपकी अपनत्व
Deleteभरी सारगर्भित प्रतिक्रियाएंसदैव मेरा मनोबल बढाती है। आपके स्नेहिल आशीष की प्रतीक्षा रहती है। अनेकों आभार एवं प्रणाम। 💐💖❤️
*प्यारी/प्यारे
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार ७ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आदरणीया मैम, आपने सदैव ही अपने अपनत्व और स्नेहिल आशीष से मेरा मनोबल बढ़ाया है एयर मुझे प्रोत्साहित और प्रेरित किया है। सादर प्रणाम एवं आभार।
Deleteनन्नन, आहा कितना प्यारा सम्बोधन उतना ही प्यारा संस्मरण है मिठास से भरा हुआ. मुझे भी अपनी नानी याद आ गयीं.
ReplyDeleteआदरणीया मैम, आपकी इस प्यारी भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए कृतज्ञ हूँ। सादर प्रणाम। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है,सदैव आती रहें।
Deleteप्रिय अनन्ता ,
ReplyDeleteये लेख पहले ही पढ़ा था , जब तुमने इस ब्लॉग का परिचय कराया था , बस उस दिन प्रतिक्रिया नहीं दे पाई थी । डायरी के माध्यम जे जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण क्षणों को याद करना और उसमें नानी को इतने प्यार से याद करना लाजवाब ।
आदरणीया मैम, आपकी सुंदर प्रतिक्रियाएं सदा ही अपनत्व और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आती हैं। हार्दिक आभार एवं सादर प्रणाम।
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